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आईपीएल में फिक्सिंग की कालिमा

वैचारिकी
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spot fixing भद्रजनों का खेल एक बार पुनः फिक्सिंग की जद में आकर प्रशंसकों को बड़ा झटका दे गया है। और तो और अब इस पूरे आयोजन पर भी सवालिया निशान उठाये जा रहे हैं। और ऐसा हो भी क्यूं न? आईपीएल-६ में स्पॉट फिक्सिंग का भंडाफोड़ करते हुए दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि इस मामले में तीन क्रिकेटर क्रमशः अंजीत चंदीलिया, एस श्रीशांत और अंकित चव्हाण उसके रडार पर थे और ये क्रिकेटर बुकीज के सीधे संपर्क में थे। दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार और स्पेशल सेल के डीएसपी संजीव यादव ने प्रेसवार्ता में बताया कि ५ मई, ९ मई और १५ मई को हुए राजस्थान के मैचों में स्पॉट फिक्सिंग हुई और ये फिक्सिंग इन्होंने की। पुलिस ने इन तीनों क्रिकेटरों और कई बुकियों को गिरफ्तार कर लिया है। इनके खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश का केस दर्ज किया गया है। इन तीनों क्रिकेटरों सहित अन्य को ५ दिनों की पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है। ये तीनों ही खिलाड़ी राजस्थान रॉयल्स टीम में थे। हालांकि पुलिस ने टीम मालिकों के प्रकरण में शामिल होने से इनकार करते हुए कहा है कि प्रारंभिक जांच में उनके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य नहीं मिले हैं। इससे पूर्व भी आईपीएल-५ में स्पॉट फिक्सिंग के जिन्न में खूब तहलका मचाया था। उस दौरान जिन क्रिकेटरों को स्पॉट फिक्सिंग में पकड़ा गया वो थे, पुणे वॉरियर्स के मोहनीश मिश्रा, किंग्स इलेवन पंजाब के शलभ श्रीवास्तव, डेक्कन चार्जर्स के टी पी सुधींद्र, किंग्स इलेवन पंजाब के अमित यादव और दिल्ली के एक क्रिकेटर अभिनव बाली। इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में मैच फिक्सिंग से लेकर स्पॉट फिक्सिंग की बातें पहले भी उठती रही हैं किन्तु न तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और न ही सरकार ने इस ओर कोई ठोस कदम उठाये| ऐसा प्रतीत होता है कि आईपीएल में काले धन को सफ़ेद करने की प्रक्रिया का दायरा बीसीसीआई के बूते से कहीं आगे निकल गया है| मैं मानता हूँ कि किसी फ्रेंचाइजी पर सीधे उंगली नहीं उठाई जा सकती, पर यदि आईपीएल के अनजाने डोमेस्टिक खिलाड़ियों तक को अंदरखाते महंगी कारें और फ्लैट बतौर तोहफे में दिए गए हैं, तो समझा जा सकता है कि इस खेल में काले धन का कैसा इस्तेमाल हो रहा है? क्या बीसीसीआई और सरकार टीम फ्रेंचाइजी पर कोई कार्रवाई करेंगीं? शायद नहीं क्यूंकि बाजारवाद के चलते आईपीएल भी दोनों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रहा है| फिर यह पहली बार नहीं कि आईपीएल को लेकर विवाद न हुए हों किन्तु सभी विवादों को दरकिनार कर यदि आईपीएल अब तक अपनी चमक बिखेर रहा है तो समझा जा सकता है कि अब बात सरकार और बीसीसीआई से इतर विशुद्ध रूप से धन के लेनदेन की ओर इंगित कर रही है जिसमें फायदा सभी उठा रहे हैं| वैसे क्रिकेट में मैच फिक्सिंग या सट्टेबाजी कोई नई चीज नहीं है। मैच फिक्सिंग के आरोप सिद्ध होने पर पाकिस्तान के तीन बड़े क्रिकेटरों को जेल की हवा खानी पड़ी थी। वर्ष २००० में बीसीसीआई ने सट्टेबाजी की वजह से ही मोहम्मद अजहरुद्दीन, अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर और अजय शर्मा पर कार्रवाई की थी। ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिनका करियर ही फिक्सिंग की भेंट चढ़ गया पर ज्वलंत सवाल यह है कि बीसीसीआई और सरकारों ने क्रिकेट को साफ-सुथरा बनाने के लिए क्या किया? क्या सारी कवायद जनता के समक्ष खानापूर्ति मात्र थी? दरअसल क्रिकेट और खासतौर पर आईपीएल अब खेल के बजाय पूरा उद्योग बन गया है, जिसमें बहुत से लोगों के हित-अहित जुड़ गए हैं। इससे यह तो पता चलता ही है कि देश में क्रिकेट की सबसे बड़ी मंडी के भीतर क्या कुछ चल रहा है। हाँ इतना ज़रूर है कि रफ़्तार और रोमांच के इस दौर में जनता को इसके स्याह पक्ष से कोई लेना देना नहीं है| उसे तो आखिरी गेंद पर बल्लेबाज द्वारा मारा गया छक्का याद रहता है और इसी की चर्चा करना उसका मुख्य शगल बन चुका है| बाजारवाद में उसकी सोचने की शक्ति को कुंद कर दिया है जिसका फायदा टीम फ्रेंचाइजी और खिलाड़ी उठा रहे हैं|

यदि बात स्पॉट फिक्सिंग की करें तो स्पॉट फिक्सिंग सट्टेबाजों का वो कोडवर्ड है जिसमें मैच नहीं एक तय वक्त को फिक्स किया जाता है। स्पॉट फिक्सिंग के जरिए बुकी मैच के छोटे-छोटे हिस्से को सट्टे के लिए दांव पर लगाते हैं। मसलन पूरे मैच की जगह सट्टा सिर्फ इस बात लग सकता है कि क्या ८वें ओवर की आखिरी गेंद वाइड होगी या फिर नो बॉल या फिर क्या ११वें ओवर की पहली गेंद पर बल्लेबाज रन लेगा या नहीं? टॉस जीतने पर कप्तान पहले बल्लेबाजी करना पसंद करेगा या गेंदबाजी। गेंदबाजी एंड पर कौन सा अंपायर खड़ा होगा? कितने खिलाड़ी चश्मा पहनकर मैदान पर उतरेंगे? सट्टेबाज इन बातों को जानने के लिए ड्रेसिंग रूम से मिलने वाली अंदरूनी जानकारी को हासिल करने में लगे रहते हैं और उनकी नजर ऐसे खिलाड़ियों पर होती है जो उन्हें मैच से पहले कुछ जानकारी दे सके और उनके कहे मुताबिक काम भी करे। भारतीय टीम की ओर से कई अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल चुके श्रीशांत ने तो बाकायदा विशेष रूप से तौलिया कमर पर लटकाकर बुकी को इशारा किया। वहीं २९ वर्षीय हरियाणा के फर्स्ट क्लास क्रिकेटर अजीत चंदीलिया और अंकित चव्हान ने भी स्पॉट फिक्सिंग में बुकी के कहे अनुसार ही काम किया। अब जबकि पुलिस को इन तीनों का रिमांड मिला है तो आगे मामला और भी साफ़ होगा पर इतना अवश्य है कि राजनीति और खेल के बेमेल गठबंधन के चलते क्रिकेट को जमकर नुकसान हुआ है जिसका असर खेल प्रबंधन पर निश्चित रूप से पड़ा है| यही कारण है कि टीम फ्रेंचाइजी के विरुद्ध कार्रवाई करने की हिम्मत किसी के बस में नहीं है| इस मामले में बीसीसीआई से भी निष्पक्ष जांच की उम्मीद बेमानी है क्यूंकि बीसीसीआई के अध्यक्ष श्रीनिवासन चेन्नई टीम के मालिक भी हैं| ज़रा सोचिए, जब बीसीसीआई अध्यक्ष ही टीम मालिकों की सूची में है तो निष्पक्ष जांच की उम्मीद क्या करें? इन परिस्थितियों में बड़े खिलाड़ियों तक तो जांच की आंच दिन में सपना देखने जैसी है| हां, अपना दामन पाक साफ़ करने में लगा बीसीसीआई छोटे तथा गैर-परिचित खिलाड़ियों पर अपनी दादागिरी चलाकर जनता को बेवक़ूफ़ ज़रूर बना सकता है| आईपीएल ने यक़ीनन छोटे शहरों की प्रतिभाओं को अपना हुनर दिखाने तथा स्वयं को स्थापित करने का मंच प्रदान किया है किन्तु उभरती प्रतिभाओं को समय से पूर्व लील जाने का माध्यम भी यही मंच बनता जा रहा है| अब जबकि आईपीएल में काले धन को सफ़ेद करने के सबूत मिलते जा रहे हैं तो बीसीसीआई और सरकार से यह अपेक्षा है कि वे आईपीएल के कालेपन को दूर करें ताकि उसकी उजलाहट अधिक चौंधिया सके वरना इसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह उठाना लाज़मी है|

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