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शीत सत्र की गर्माहट से झुलसेगी सरकार

वैचारिकी
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आज से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है जो २० दिसंबर तक चलेगा। पिछला सत्र कोयला घोटाले की भेंट चढ़ जाने के बाद तमाम राजनीतिक दलों ने इस बात पर सहमति जताई है कि इस सत्र में विधायी कार्यो के सुचारु ढंग से निष्पादन की संभावना है। यह १५वीं लोकसभा का १२वां सत्र और राज्यसभा का २२७वां सत्र होगा। सत्र २९ दिन चलेगा और इस दौरान २० बैठकें होंगी। Session-of-Parliament इस शीत सत्र में सरकार के समक्ष जहां लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक २०११ (लोकसभा से पारित), व्हिसिल ब्लोअर्स संरक्षण विधेयक २०११ (लोकसभा से पारित), वायदा कारोबार (नियमन) संशोधन विधेयक २०१०, वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (संशोधन) विधेयक २०११, कंपनी विधेयक २०११, बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक २०११, बीमा कानून (संशोधन) विधेयक २००८, इनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एंड रिकवरी ऑफ डेट लॉ अमेंडमेंट बिल, मनी लांड्रिंग निरोधक (संशोधन) विधेयक २०११, पेंशन निधि नियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक २०११, नागरिकता (संशोधन) विधेयक २०११, उत्तर पूर्व क्षेत्र (पुनर्गठन) संशोधन विधेयक (लोकसभा से पारित), गैरकानूनी गतिविधियां (निरोधक) संशोधन विधेयक २०११, तकनीकी व मेडिकल उच्च शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों में अनुचित क्रियाकलाप निरोधक विधेयक २०१०, शैक्षिक न्यायाधिकरण विधेयक २०१० (लोकसभा से पारित), उच्च शिक्षण संस्थान मान्यता नियामक प्राधिकरण विधेयक २०१०, आर्किटेक्ट (संशोधन) विधेयक २०१०, लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण के लिए संविधान (१०८वां संशोधन) संशोधन विधेयक, पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण के लिए ११०वां संविधान (संशोधन) विधेयक २००९, विदेशी लोकसेवकों व सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठनों से रिश्वत निरोधक विधेयक २०११, सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी आरक्षण के लिए (११७वां) संविधान संशोधन विधेयक, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक २०१२, कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोक व निराकरण) विधेयक २०१२ (लोकसभा से पारित), मोटर व्हीकल (संशोधन) विधेयक २०१२ (लोकसभा से पारित), एनएचएआइ (संशोधन) बिल २०१२ (लोकसभा से हो चुका है पारित) पारित करवाने की चुनौती होगी वहीं उसे विपक्षी दलों के सियासी प्रश्नों से भी दो चार होना पड़ेगा। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जहां समय पूर्व लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को टटोलेंगे वहीं मायावती मुलायम के पैंतरों को भांपने के साथ ही अपने हितों को संरक्षण देती नजर आएंगी। उधर तृणमूल कांग्रेस खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का विरोध करते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मुहिम में है। तृणमूल के पास हालांकि प्रस्ताव पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है, लेकिन पार्टी की मंशा है कि समूचा विपक्ष एकजुट होकर उसके प्रस्ताव का समर्थन करे। तृणमूल ने यह विकल्प भी दिया है कि मार्क्स वादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) या कोई अन्य दल प्रस्ताव लाए, जिसके पास संख्या बल है, तृणमूल उस प्रस्ताव का समर्थन करेगी। माकपा की योजना मत विभाजन के जरिये सरकार को घेरने की है। वहीं भाजपा का सत्र को लेकर रुख अभी धुंधला ही है।

हालांकि कसाब को फांसी देकर सरकार ने काफी हद तक शीत सत्र में अपनी पीठ ठोंकने का विकल्प तैयार कर लिया है किन्तु तमाम दावों-वादों के बावजूद इस बात की संभावना काफी क्षीर्ण है कि यह सत्र भी निर्बाध रूप से चलेगा। अफजल गुरु की फांसी का मुद्दा गर्माने के आसार हैं। अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे के जनांदोलन यूं तो सरकारी दायरे से मुक्त होते हैं किन्तु इनके द्वारा उठाये जा रहे मुद्दों को लपककर विपक्ष सदन में सरकार को घेरने की रणनीति बनाता है। यानी संसद का हिस्सा न होते हुए भी अन्ना-केजरीवाल का भूत सरकार को डराता रहेगा। सबसे अधिक सरकार पर लोकपाल के गठन, सीबीआई एवं सीएजी को संवैधानिक दर्जे के साथ ही स्वायत्ता देने का भारी दबाव होगा। इस बार के शीत सत्र में हाल ही में हुए कांग्रेस संगठनात्मक फेरबदल में राहुल की बदली भूमिका की परीक्षा होगी। भाजपा अपने अध्यक्ष नितिन गडकरी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते शायद ही भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाये। वैसे कांग्रेस ने इस सत्र को अपनी बिगड़ी छवि को सुधारने का माध्यम बनाया है जिसमें यदि वह सफल होती है तो यह बिखरे विपक्ष की हार होगी। कुल मिलकर संसद का यह शीत सत्र भी कुछ ख़ास आशाएं नहीं जगाता।

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